Friday, August 23, 2013

मुहब्बत

                                   मुहब्बत

मुहब्बत करना तो सबको आता है
जतलाना कितनो को आता है
यह शब्द नहीं एहसास है
कब कहाँ हो जाये ,इसमें कुछ तो खास है 
है सबको मानते कितने हैं  
यह क्या है आज तक समझ नहीं आया
हाथ में हाथ डाल घूमना मुहब्बत है
एक दुसरे को समझना मुहब्बत है
किसी का दिल  को भा जाना मुहब्बत है
इसका असल भाव समझ नहीं आया
यह सच है या कोई छाया
 या मृगतृष्णा है जिसने इंसान को लुभाया
आज तक कोई समझ नहीं पाया


Wednesday, August 21, 2013

                      फिर याद आई

हर वर्ष की तरह यह राखी फिर आई
फिर दबे दर्द हरे कर गई
आँखों मैं आंसुओं का सैलाब दे गई
जिसे भूलने की अनथक तमन्ना थी
उसकी याद फिर दिला गई
आंसुओं के सैलाब को छुपा छुपा
अब तो मैं भी बेहाल हो गई
एक सखी आ कर फिर उस
बेदर्द की याद दिला गई
वक़्त के साथ यह उसकी रिक्तता
का एहसास करा गई
क्यूँ आती है राखी और भैया दूज
उस दर्द को बढ़ा गई